Monday, January 30, 2023
Tulsidas ka jeevan parichay
तुलसी एक ऐसी महत्वपूर्ण प्रतिभा थे, जो युगो के बाद एक बार आया करती है तथा ज्ञान विज्ञान, भाव विभाग अनेक तत्वों का समाहार होती है जिनकी प्रतिभा इतनी विराट थी कि उसने भारतीय संस्कृति की सारी विराटता को आत्मसात कर लिया था यह मान दृष्टा थे, परिणाम अता स्पष्टता थे यह विश्व कवि थे और हिंदी साहित्य के आकाश थे सब कुछ इनके घेरे में था | गोस्वामी तुलसीदास के जीवन वृत्त के ब|रे में अंता साक्ष्य एवं वही साक्ष्य के आधार पर विद्वानों ने विविध मत प्रस्तुत किए हैं बेनी माधव दास प्रणीत मूल गोसाईं चरित तथा महात्मा रघुवर दास रचित तुलसी चरित्र में गोस्वामी जी का जन्म संवत् 1554 दिया हुआ है बेनी माधव दास जी की रचना में गोस्वामी जी की जन्म तिथि श्रावण शुक्ला सप्तमी का भी उल्लेख है इस संवत के अनुसार इनकी आयु 126 से 127 वर्ष की ठहरती है। शिव सिंह सरोज में इनका जन्म संवत 1583 स्वीकार किया गया है। कुछ विद्वानों ने जनश्रुति के आधार पर इनका जन्म संवत 1589 स्वीकार किया है। अंता साक्ष्य के आधार पर भी इनकी जन्मतिथि सन 1589 अधिक युक्तिसंगत प्रतीत होती है। इनके पिता का नाम आत्माराम दुबे था। इनके बचपन का नाम तुलाराम था। इनका जब जन्म हुआ तब यह 5 वर्ष के मालूम होते थे, दांत सब मौजूद थे और जन्म होते ही इनके मुख से राम का शब्द निकला इसीलिए इन्हें रामबोला भी कहा जाता है। आश्चर्यचकित होकर कोमा इन्हें राक्षस समझकर माता-पिता द्वारा त्याग दिए जाने के कारण इनका पालन पोषण एक दासी ने तथा ज्ञान एवं भक्ति की शिक्षा प्रसिद्ध संत बाबा नरहरिदास ने प्रदान की। इनका विवाह रत्नावली के साथ हुआ था। ऐसा प्रसिद्ध है कि रत्नावली की फटकार से ही इनके मन में वैराग्य उत्पन्न हुआ । कहा जाता है कि एक बार पत्नी के द्वारा बिना बताए ही मायके चले जाने पर प्रेमातुर तुलसी अर्धरात्रि में आंधी तूफान का सामना करते हुए अपनी ससुराल जा पहुंचे पत्नी ने इसके लिए इन्हें फटकारा। फटकार सेना बैराग्य हो गया इसके बाद काशी के विद्वान शेष सनातन से तुलसी ने वेद वेदांग का ज्ञान प्राप्त किया और अनेक तीर्थों का भ्रमण करते हुए राम के पवित्र चरित्र का गान करने लगे । इनका समय काशी अयोध्या और चित्रकूट में अधिक व्यतीत हुआ संवत 1680 में श्रावण कृष्ण पक्ष तृतीया शनिवार को अस्सी घाट पर तुलसीदास राम राम कहते हुए परमात्मा में विलीन हो गए।
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